सेवक का फर्ज है कि वो स्वामी भक्त हो | स्वामी भक्ति एक बहुत बड़ी परीक्षा है एक सेवक के लिए | जब स्वामी के प्राण संकट में हो तो सेवक को अपने प्राणों की परवाह न करते हु अपने स्वामी के प्राणों की रक्षा करनी चाहिए | यदि सेवक स्वामी भक्त नहीं है तो वो कायर कहलायेगा | यदि स्वामी के प्राण संकट में हो तो तमाशा देखता रहे तो ऐसे सेवक की जरूरत नहीं | यदि वो कहे के मैं झगड्रों में नहीं पड़ता तो यह उत्तर उसकी कायरता को बताते है | जब सेवक के अपने बच्चे के प्राण संकट में हो तो क्या यही उत्तर होता है
स्वामी भक्ति के लिए क्या करना चाहिए
याद रखे जब आप सेवक का कार्य करते हो तो बहुत धन मिलता है जिससे आप के परिवार का निर्वाह हो सके , पर सेवक का कार्य एक कुरुक्षेत्र है जहा महाभारत का युद्ध हुआ था , कायर बनके न जाये सेवक बनने | अपने भय को जीते | इंद्रियविजय बने | युद्ध करे , अपने स्वामी की रक्षा अपने प्राण देकर करे | या स्वामी बन जाये अपने खर्चों पर नियंत्रण करके व् खोजे सच्चे सेवक को |
सच्चे स्वामी भक्त की मिसाल
पन्ना धय एक महँ स्वामी भक्त थी | उसकी ड्यूटी थी राणा सांगा के पुत्र राणा उदय सिंह की माता की अनुउपस्थिति में उसके शिशु को दूध पिलाना व देखभाल करना |
सिर्फ देख भल करना = देखना गिर न जाये
भालना , ध्यान देना कही कोई उठा न ले जाये | उसके बदले उसे मिलता था धन
जिस से उसके परिवार का निर्वाह होता था | पर उसने अपने एक मात्र पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राज्य के कुल दीपक उद्य सिंह की रक्षा की थी |
बहादुरशाह का चितोड़ पर हमला : उदय की माता रानी कर्मवती ने जोहर द्वारा किया बलिदान
दासी पुत्र बनवीर चितोड़ का राजा बनना चाहता था इस लिए उदय सिंह को मारने के लिए वो महल पंहुचा | इसकी दासी ने इसकी सुचना पन्ना धाय को दी |
महान सेवा कार्य :
उसने उदय को एक टोकरी में डाल कर महल से बाहर सुरक्षित जगह पर भेज दिया | बनवीर को धोखा देने के लिए अपने स्वयं क हमउम्र बीटा उदय को पलंग पर सलवा दिया | बनवीर ने पूछा कहा है उद्य | उसने वहां इशारा कर दिया जहा उसका पुत्र सोया था | बनवीर ने उसे उदय समझ कर अपनी तलवार से मार डाला | इस तरह पन्ना धाय ने अपनी स्वामी भक्ति के लिए अपने पुत्र का बलिदान दिया |
प्रेरणा : - जब सेवक अपनी सेवा के लिए स्वामी से धन लेता है ताकि उसके परिवार के प्राणों की रक्षा हो सकते तो स्वामी के देना जाता है , क्योकि स्वामी है तो प्राण है , क्योकि धन से अनाज व अनाज से प्राण की रक्षा होती है | इस लिए अपने प्राण की रक्षा के लिए स्वामी के प्राणों की रक्षा करना जरुरी है इसी धन से स्वामी के भी प्राणों की रक्षा पर फिर भी उसने आने धन का त्याग किया | त्याग ही महान है , स्वार्थ ही प्राणघातक है |
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